नदी की बहती हुई तेज लहरों पे
वो किश्ती कितनी बेवश है
लाचार है
वो चाहे या ना चाहे
उसे चलना हीं होगा
किनाराआये या ना आये
उसे चलना हीं होगा
अपनी जिन्दगी की किश्ती भी तो कुछ ऐसी ही है
वक़्त की तेज रफ्तार के सामने कहां रूकती है
कौन रोक पाता है
लहरों को
किश्ती की मंजिल का क्या पता
उसे तो खुद अपनी हीं मंजिल का पता मालूम नहीं
कितनी अन्जान हैं ये गुमनाम लहरें
लेकिन किश्ती की मंजिल का पता
मालूम है किश्ती के मांझी को
वो जहां चाहे रोक सकता है
मोड सकता है किश्ती को
अपनी जिन्दगी के मांझी तो हम खुद हीं हैं
ये हमारे हाथ है कोई अंजाम देना
अपनी जिन्दगी का जो भी हम चाहें